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किसी भी चीज की अति बुरी होती है

ताईवान में रहने वाला शुमितो किसी सामान्य लड़के की ही तरह था। वह अपनी हरेक परीक्षा में 85 फीसदी से 90 फीसदी अंक लेकर आता। कुछ दिनों से वह अपने अभिभावकों से लेटेस्ट स्मार्टफोन दिलाने की जिद कर रहा था। यह देख उसके अभिभावकों ने उससे वादा किया कि अगर वह अपनी वार्षिक परीक्षाओं में स्कूल में शीर्ष रैंक में स्थान बनाने में सफल रहता है, तो वे उसे स्मार्टफोन लेकर दे देंगे। शुमितो ने कड़ी मेहनत की और स्कूल में दूसरी रैंक लेकर आया। नतीजतन उसके अभिभावकों ने उस लेटेस्ट आईफोन दे दिया। यह फोन शुमितो की जिंदगी में टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। अब वह हर समय अपने फोन से चिपके रह कुछ न कुछ सर्च किया करता। उसके माता-पिता को लगता कि वह पढ़ाई-लिखाई से संबंधित वेबसाइट्स या कंटेंट सर्च कर रहा है। लेकिन वास्तव में शुमितो को सोशल नेटवर्किंग साइट्स की लत लग चुकी थी। यहां तक कि अब आईफोन उससे एक मिनट के लिए भी अलग नहीं होता। यह बात उसके माता-पिता ने भी नोटिस की और उसकी बिगड़ती मनोदशा को देख उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। शुमितो को स्मार्टफोन से जुड़े विड्रॉअल सिम्टम्स से लंबे समय तक जूझना पड़ा। उसके पढ़ाई के कीमती दो वर्ष भी इस 'बीमारी' की भेंट चढ़ गए। जाहिर है कि यह स्थिति तीनों पर ही बेहद भारी पड़ी।

हर साल एक नई बीमारी को अपनी सूची में अपडेट करने वाले 'द डायग्नोस्टिक स्टेटिस्टिकल मैनुअल' ने इस साल भी एक नई बीमारी को शामिल किया है। यह है 'इंटरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर'(आईएडी)। इसके कारण दिमाग में खून का थक्का जम जाने से दुनिया के विभिन्न देशों में दस लोग काल के गाल में समा चुके हैं। उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि वे दिन भर में 18 घंटे तक कंप्यूटर या स्मार्टफोन से चिपके रहते थे। चीन, कोरिया और ताईवान ने इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट वाली बीमारी में शुमार किया है। इन तीन देशों में लाखों लोग वेब की असीमित दुनिया के लती पाए गए हैं। खासकर गेमिंग, सोशल मीडिया और वर्चुअल रियलिटी ने इन्हें किसी नशे की तरह अपनी गिरफ्त में ले लिया है।

यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड ने 'अनप्लग्ड' नाम से करीब 200 स्टूडेंट्स पर एक सर्वेक्षण किया। सभी को एक दिन के लिए कंप्यूटर या स्मार्टफोन से अलग रखा गया। उस पूरे दिन उनसे अपने मनोभावों को रिकॉर्ड करने को कहा गया। परिणाम चौंकाने वाले आए। एक ने सोशल मीडिया को 'ड्रग्स' की तरह बताया, तो दूसरे ने स्मार्टफोन के बगैर खुद को गंभीर रूप से 'बीमार' बताया। नई पीढ़ी खासकर अमेरिकी बच्चों में 'इंटरनेट की लत' को लेकर हालिया लांच किताब 'डिसऑर्डर' में कहा गया है, 'ऐसा प्रतीत होता है कि हम तकनीक का चयन करते हैं। लेकिन वास्तव में हम खुद उसकी असीमित संभावनाओं और क्षमता के जाल में फंसते जाते हैं। फोन पर रिंग के तौर पर बजने वाली प्रत्येक आवाज हमें प्रोफेशनल अवसर की तरह लगती है। धीरे-धीरे फोन की 'बीप' या 'रिंगटोन' किसी लत की तरह हमारे मस्तिष्क में पैठ जाती है। ऐसी आवाज सुनाई न पडऩे पर हमें खालीपन समेत कुछ छूट जाने का अहसास होता है।' यही वजह कि लोग धीरे-धीरे स्मार्टफोन जैसे गैजेट्स के लती बन जाते हैं।


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