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दलाल+पीडी+कर्मचारी=खूनी कारोबार



खून की खरीद-फरोख्त के धंधे में निजी ब्लड बैंक के कर्मचारी, दलाल और प्रोफेशनल डोनर (पीडी) की तिकड़ी काम कर रही है। प्रबंधन ब्लड बैंक चलाने के लिए दलालों को प्रश्रय दे रहे हैं और दलाल प्रोफेशनल डोनर का नेटवर्क तैयार कर खून उपलब्ध करा रहे हैं। इस तिकड़ी ने शहर में रक्त का अवैध बाजार खड़ा कर दिया है। सूत्र बताते हैं कि अधिकतर निजी ब्लड बैंकों का काम प्रोफेशनल डोनर के बिना नहीं चलता। दलाल पीडी का नेटवर्क तैयार करते हैं और इन्हें ब्लड बैंक तक लाते हैं। पीडी चंद रूपयों के लालच में खून बेच देते हैं।

लालच का रक्तदान
रक्तदान के नियमों के मुताबिक कोई रक्तदाता एक बार रक्तदान करने के बाद तीन माह बाद ही अगला रक्तदान कर सकता है। पर पीडी के मामले में सेहत की हिफाजत के इस नियम को भी ब्लड बैंक व दलाल ताक पर रख देते हैं। ब्लड बैंक की जरूरत के कारण कई बार पीडी सप्ताह भर में या 15 दिन में ही दोबारा ब्लड दे देता है। ब्लड बैंक भी एचबी बढ़ाने के लिए पीडी को आयरन की गोलियां खिलाते रहते हैं।

सेहत के लिहाज से यह खतरनाक प्रैक्टिस है। एक बार में ब्लड डोनर का अधिकतम 300 एमएल रक्त ही लिया जा सकता है, लेकिन ब्लड बैंक के धंधे का एक काला सच और भी सामने आया है। एक ब्लड बैंक के कर्मचारी ने बताया कि कई बार प्रोफेशनल डोनर की जानकारी के बिना 300 की जगह 500 एमएल तक ब्लड निकाल लिया जाता है।

जांच का शॉर्टकट
जब कोई डोनर ब्लड बैंक जाता है, तो उसके रक्त के नमूने के पांच टेस्ट होते हैं। इसमें एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी, हेपेटाइटिस-सी, वीडीआरएल और मलेरिया की जांच शामिल हैं। सामान्य तौर पर इन जांचों की प्रक्रिया पूरी होने में तीन-चार घंटे लगते हैं। इससे पता चलता है कि रक्तदाता का ब्लड अन्य व्यक्ति को चढ़ाने लायक है या नहीं? पर कुछ निजी ब्लड बैंकों में शॉर्टकट अपनाया जाता है। इससे मरीज को संक्रमित ब्लड चढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। आमतौर पर नशेड़ी, ऑटो चालक, पान वाले आदि पीडी के रूप में काम करते हैं। नशेड़ी पीडी या किसी बीमारी से ग्रस्त डोनर का ब्लड चढ़ जाए तो इससे मरीज को संक्रमण का खतरा हो सकता है। मरीज को बैठे-बिठाए कोई अन्य बीमारी हो सकती है।

निचले कर्मचारी भी शामिल
कुछ जगह अस्पताल और नर्सिüग होम में काम करने वाले गार्ड, निचले स्तर के कर्मचारी भी इस धंधे में शामिल होते हैं। भोपाल के सरकारी ब्लड बैंकों के आसपास भी इस तरह के दलालों की उपस्थिति बताई जाती है। निजी ब्लड बैंक के अलावा ये दलाल सरकारी अस्पतालों में भी घुसपैठ बनाने की कोशिश करते हैं। स्वैच्छिक रक्तदान की कमी के कारण इन तत्वों का धंधा चल रहा है।


मोबाइल पर चलता है पूरा नेटवर्क
ब्लड की खबर के साथ जोड़ खून के दलालों का नेटवर्क मोबाइल पर चलता है। दलाल सरकारी और प्रायवेट अस्पतालों के पार्किüग कर्मचारी, चपरासी, गार्ड, सफाईकर्मी, आसपास की चाय और पान की दुकान वालो से संबंध स्थापित करते हैं। इसके बाद इन्हें अपना मोबाइल नंबर दे देते हैं। साथ ही यह भी बताते हंै कि अगर किसी को ब्लड की जरूरत हो तो संपर्क कर लेना, इसके बदले सूचना देने वाले को कमीशन देने का प्रलोभन भी दिया जाता है।
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