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हर चीज का होता है एक जीवनचक्र

पुरुष के हाथ से किसी बच्चे का पिता बनने का सबसे सुरक्षित समझा जाने वाला जॉब भी अगले दस सालों में छिन जाएगा, क्योंकि इस जॉब की लाइफसाइकिल बदल रही या खत्म हो रही है। हर जॉब की एक लाइफसाइकिल होती है और इसे खत्म होने से बचाने के लिए इसके तौर-तरीकों में बदलाव करना जरूरी है।

इस दुनिया में हरेक उत्पाद या इंसान समेत प्रत्येक प्रजाति का एक जीवनचक्र होता है, जिसके बाद यह खत्म हो जाता 
या मर जाता है। इसी तरह हर जॉब की भी एक लाइफसाइकिल होती है और यदि इसमें अपग्रेडेशन या बदलाव न किया जाए, तो यह कुछ समय बाद मरने लगता है। इसी वजह से कहते हैं कि दुनिया में एक ही चीज स्थायी है और वह है बदलाव। सजीव प्राणियों का सर्वाधिक अहम जॉब है प्रजनन। हजारों वर्र्षों से तमाम प्रजातियों के नर व मादा साथ मिलकर अपनी संतति को आगे बढ़ाते चले आ रहे हैं। लेकिन अब यह चक्र पूरा हो गया है। नए शोध से पता चला है कि मादा द्वारा नर प्रजाति की मदद के बगैर भी बच्चे पैदा किए जा सकते हैं। हाल ही में दो मादा चूहों ने मिलकर एक चुहिया को जन्म दिया है, जिसका नाम कगुयु रखा गया है। जापान में शोधार्थी दो अंडाणुओं को एक साथ जोड़ते हुए इनसे एक भ्रूण को विकसित करने में सफल रहे, जिसे बाद में एक वयस्क चुहिया की कोख में प्रत्यारोपित कर दिया गया।

पिछले हफ्ते अपनी लंदन यात्रा के दौरान मेरी मुलाकात भारतीय मूल की लंदन-बेस्ड बॉयोलॉजिस्ट व जेनेटिसिस्ट आरती प्रसाद से हुई, जिनकी अगले महीने एक किताब 'लाइक ए वर्जिन : द साइंस ऑफ सेक्सलेस फ्यूचर' आने वाली है। वह अपनी किताब में लिखती हैं कि किस तरह महिलाएं किसी पुरुष के बगैर बच्चा पैदा कर सकती हैं। उनकी किताब, जो भारत में अगस्त में प्रकाशित होगी, में यह भी बताया गया है कि किस तरह पुरुष भी खासतौर पर उन्हीं के लिए बनी सिलिकॉन कोख के जरिए गर्भधारण कर सकते हैं। बड़े जंतुओं में वर्जिन बर्थ के मामले पहले भी प्रकाश में आते रहे हैं। आरती की किताब में दुनियाभर के ऐसे कई प्राणियों की केस स्टडीज हंै। इन्हीं में से एक बोनट-हेड मादा शार्क भी है, जिसे एक अमेरिकी जंतु वाटिका में अलग-थलग रखा गया था और जिसका कभी नर शार्क से आमना-सामना नहीं हुआ। इसके बावजूद उसने वयस्क की तरह एक स्वस्थ नन्हीं शार्क को जन्म दिया।

1980 से वैज्ञानिक बच्चे पैदा करने की ऐसी प्रक्रिया पर काम कर रहे थे, लेकिन पहली सफलता टोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर में दर्ज की गई। अब 2012 में वैज्ञानिक लेबोरेटरी में इंसान की बोन-मैरो कोशिकाओं से अंडाणु व शुक्राणु तैयार करने में सफल रहे हैं। इससे पुरुष व महिलाओं को विपरीत लिंगियों की सहायता के बगैर अपने बच्चे पैदा करने में मदद मिलेगी। इंसान व चूहे की जेनेटिक संरचना एक जैसी होती है। इसलिए यदि ऐसा चूहों में संभव है, तो इंसानों में भी मुमकिन हो सकता है। एक बाधा यह है कि दो अंडाणुओं के सम्मिलन से एक भ्रूण के विकास को तो गति मिल सकती है, लेकिन यह भ्रूण मादा होगा। यदि आपको नर शिशु चाहिए, तो उसके लिए कुछ अलग तकनीक अपनानी पड़ेगी।

आरती अपनी किताब के आखिर में लिखती हैं कि अगले दस से पंद्रह वर्र्षों में यह तकनीक क्लीनिक्स में इस्तेमाल के लायक हो जाएगी। दुनियाभर में नपुंसकता की दर जिस तेजी से बढ़ रही है, उसमें ऐसी रिसर्च इंसानी पीढिय़ों को प्रजनन के वैकल्पिक रूपों के जरिए पनपने में मदद करेगी। इससे लगता है कि अगले दस वर्र्षों में पुरुष शिशुओं के निर्माण का जॉब भी खो देंगे और प्रजनन की प्रक्रिया नए सिरे से परिभाषित होगी।


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